उदास कर देती है हर रोज...ये शाम मुझे !
लगता है जैसे कोई भूल रहा हो मुझे आहिस्ता आहिस्ता !!
बहुत अन्दर तक तबाही मचाता है !
वो आंसू जो आँखों से बह नहीं पाता !!
मै खाने पे आऊंगा मगर पिऊंगा नहीं साकी,
ये शराब मेरा गम मिटाने की औकात नही रखती…
गम से हो रूबरू तो मिट जाते हैं गम
मुश्किलें इतनी पड़ी मुझपे कि आसान हो गईं।
कभी साथ बैठो…
तो बयां दर्द भी हो…
अब यूँ दूर से पूछोगे…
तो ख़ैरियत ही कहेंगे !!!
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