Tuesday, 17 September 2019

हम-तुम

मै तेरा कुछ भी नहीं हूँ, मगर इतना तो बता !
देखकर मुझको तेरे जेहन में आता क्या है !!

आज कुछ और नहीं बस इतना सुनो !
मौसम हसीन है लेकिन तुम जैसा नहीं !!

एक तुम भी ना कितनी जल्दी सो जाते हो…
लगता है इश्क को तुम्हारा पता देना पड़ेगा.!!

जिसकी याद मे हमने खर्च की जिन्दगी अपनी
वो शख्श आज मुझको गरीब कह के चला गया

इश्क़ कर लीजिये बेइंतिहा किताबों से
एक यही हैं जो अपनी बातों से पलटा नहीं करतीं !!

मर्जी से जीने की बस ख्वाहिश की थी मैंने !
और वो कहते हैं कि खुदगर्ज़ बन गए हो तुम !!

माना कि उस शख्स में, बहुत-से ऐब हैं मगर !
मेरे दिल ने भी उसको, यूँ ही तो चाहा नहीं होगा !!

कमजोर पड गया है, मुझ से तुम्हारा ताल्लुक I
या फिर कहीं और सिलसिले मजबुत हो गये है I

नामुमकिन है इस दिल को समझ पाना !
दिल का अपना अलग ही दिमाग होता है !!

ज़िन्दगी में तेरी यादों को भुला दूं कैसे
रात बाकि है चिरागों को बुझा दूं कैसे

नींद आए या ना आए, चिराग बुझा दिया करो,
यूँ रात भर किसी का जलना, हमसे देखा नहीं जाता…

वो सरफिरी हवा थी संभालना पड़ा मुझे
मैं आख़िरी चिराग था जलना पड़ा मुझे

वो लिखते हैं हमारा नाम मिटटी में , और मिटा देते हैं ,
उनके लिए तो ये खेल होगा मगर ,हमें तो वो मिटटी में मिला देते हैं 

अब इत्र भी मलो तो मुहब्बत की बू नहीं।
वो दिन हवा हुए कि पसीना गुलाब था।।

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