Tuesday 17 September 2019

जोश

वक़्त के कारवां से आगे हूँ , बेरहम आसमान से आगे हूँ
हूँ कहाँ ये तो खुदा जाने , पर था कल जहाँ वहां से आगे हूँ 

हथेली पर रखकर नसीब,
हर शख्स अपना मुकद्दर ढूँढ़ता है,
सीखो उस समन्दर से,
जो टकराने के लिए पत्थर ढूँढ़ता है….

एक न एक दिन हासिल कर लूँगा मंजिल अपनी, ठोकरें जहर तो नहीं जो खाकर मर जाऊंगा.

सही वक्त पर करवा देंगे हदों का अहसास...
कुछ तालाब खुद को समंदर समझ बैठे हैं!!

हवा से कह दो कि खुद को आजमा के दिखाये.
बहुत चिराग बुझाती है, एक जला के दिखाये.

ख़्वाब टूटे है मगर हौसले अभी ज़िंदा है
मैं वो शक्स हूँ जिससे मुश्किलें भी शर्मिंदा है !

हम भी दरिया हैं, अपना हुनर मालूम है हमें
जिधर भी चल देंगे रास्ता हो जाएगा

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